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बुधवार, 12 जून 2013

उत्तम वंश वृद्धि के उपाय


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सभी दम्पतियों की इच्छा होती है कि उसके बाद उसका पुत्र उसके वंश को आगे चला सके। इसलिए वे चाहते हैं कि उनके वंश को चलाने के लिए पुत्र का जन्म होना आवश्यक है। वैसे देखा जाए तो उत्तम वंश की परंपरा जो हमारे पुरखों द्वारा छोड़ी गई है, उसे चलाए रखने के लिए बड़े, बूढ़े, शादी-विवाह के अवसर पर कुल-गोत्र का मिलान करते हैं। वंश परम्परा तथा चलन को देखने के लिए खान-पान तथा आचार-विचार पर ध्यान दिया जा सकता है।
बहुत से विद्वानों का कहना है कि जिन स्त्री-पुरुषों में प्रेम अधिक होता है, उनके द्वारा उत्पन्न पुत्रों के गुण उनके स्वयं के गुणों से मिलते-जुलते हैं। शरीर की सुन्दरता और उसके अंदर के गुण जिस स्त्री तथा पुरुष में होते हैं, उनमें हमेशा ऐसे पुत्र को प्राप्त करने का लालच होता है जिसके अंदर ठीक उसकी छवि दिखाई दे और जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी तक वही नस्ल चलती रहे।
हम आपको यह बताना चाहते हैं कि उत्तम संतान की प्राप्ति तभी हो सकती है जब तक पति-पत्नी में गहरा प्रेम, उमंग, आनन्द, वासना और उत्साह भरा हो। उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए पति-पत्नी को उत्तम स्थिति में रहना जरूरी है। इसलिए कहा जा सकता है कि गर्भाधान के समय में दम्पत्ति की जो मनोवृत्ति होती है उसका गर्भ पर स्थिर प्रभाव पड़ता है।
शारीरिक और जातीय प्रवाह के कारण से उत्पन्न हुए मनुष्य का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जो परस्पर सिलसिला बना रहता है तो उसे ही वंश परम्परा के नाम से जाना जाता है।
मनुष्यों के शरीर में जो परमाणु होते हैं, वे अपने आकृति को दूसरे की तरह धारण करने की कोशिश करते हैं। वही बाद में पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों में उतरते हैं, जैसे- आंखों का रंग, त्वचा, बाल, वजन, कद, शारीरिक तथा मानसिक बल, बोलने की कला, गाने बजाने में विशेषता, देखने में अंतर, सुनने की शक्ति, पैतृक नशेबाजी, पैतृक रोग जैसे टी.बी. या मिर्गी तथा उपदंश आदि स्वाभाविक ही उनमें प्रकट हो जाया करते हैं। जिनके माता-पिता जिन-जिन रोगों से ग्रसित होते रहते हैं उसी प्रकार के रोग उनके बच्चों को भी होने का खतरा बना रहता है।
वैसे देखा जाए तो मनुष्य केवल अपने माता-पिता से ही उत्पन्न नहीं हुआ करता है बल्कि जिस बीज से बच्चे की उत्पत्ति होती है उसके पूर्वज, वंशधरों का अंश भी उसमें होता है, जैसे कई पुत्र में माता-पिता के चौथाई अंश गुण अवश्य ही रहते हैं जिससे उस संतान पर वही प्रभाव प्रकट हुआ दिखाई पड़ता है।
किसी भी पुत्र में उसके माता-पिता के अधिक से अधिक गुण पाए जाते हैं। लेकिन यह भी देखा गया है कि किसी पुत्र में माता के गुण अधिक पाए जाते हैं तो किसी में पिता के, किसी में एक के गुण अधिक दिखाई देते हैं तो किसी में एक का गुण दूसरे के गुणों से छिप जाता है।
यदि आप अपने संतान के गुणों में सुधार करना चाहते हैं तो आपको प्राकृतिक नियमों के ज्ञान का अनुसरण करना पड़ेगा। जिसके फलस्वरूप कई पीढ़ियों के अनन्तर तथा दोष नष्ट होकर अच्छे गुण का प्रभाव अपने पुत्र में पा सकते हैं। सबसे पहले दम्पतियों को यह सोच लेना चाहिए कि इस प्रकार के परिवर्तन करने से हमारे संतान को कष्टों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इस तरह की परिस्थितियों को सोचकर ही बुद्धिमान पुरुष श्रेष्ठ कदम उठा सकते हैं। 
बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि पुत्र के शरीर की रचना का आधा भाग माता-पिता के गुणों को मिलाकर पूर्ण होता है बाकी आधा पूर्व पुरुषों से या वंश परम्परा से आता है। कहने का अर्थ यह है कि बच्चे के शरीर का आकार, गुण तथा सुंदरता का आधा भाग तो माता पिता से मिलता है तथा बाकी का आधा अपने वंश के पहले के पुरुषों से मिलता-जुलता होता है।
कभी-कभी तो यह भी देखा गया है कि बच्चे में मातृक और पैतृक गुणों में से किसी एक का गुण खत्म सा हो जाता है। कभी तो संतान में माता का गुण पिता के गुणों की अपेक्षा अधिक हो जाता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता है कि पिता का गुण संतान में है ही नहीं।
कभी-कभी तो यह भी देखा गया है कि संतान में कुछ ऐसे गुणों का विकास हो जाता है जो न तो मातृक और न ही पैतृक होते हैं। इस स्थिति में कभी-कभी पुत्र में पिता के विलक्षण गुण पाए जाते हैं लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह उसके वंश में किसी पहले के पुरुष से कुछ गुण होते हैं। कुछ का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार के विभिन्न गुण पीढ़ियों तक छिपे रहते हैं और किसी प्राकृतिक कारण से वे विकसित नहीं हो पाते।
कुछ आचार शास्त्रियों तथा मनु ने माता के अंशपिण्ड और पिता के अंगोत्र कुल में विवाह का नियम बनाया है तथा कुल गोत्र, शाखा व प्रवर आदि सात बातों का विभक्तिकरण है। विवाह में इन संबंध बातों को देख लेना चाहिए।
बहुत से विद्वानों ने यह कहा है कि जो स्त्री माता की 6 पीढ़ी और पिता के गोत्र की न हो वही विवाह के योग्य है।
दस कुल (परिवार) ऐसे होते हैं जिसमें विवाह नहीं करना चाहिए – 
1. जिस कुल में किसी को पेचिश का रोग हुआ हो उससे विवाह न करें।
2. जिस कुल में कोई टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग से पीड़ित हो उससे शादी न करें।
3. जिस कुल में किसी को बवासीर हो गया हो उस कुल में विवाह न करें।
4. जिस कुल में किसी के शरीर पर बड़े-बड़े रोग हो उस कुल में विवाह करना उचित नहीं होता है।
5. जिस कुल में कोई विद्वान न हो उस कुल में विवाह करना ठीक नहीं है।
6. जिस कुल में कोई उत्तम पुरुष न हो उसमें शादी न करें।
7. जिस कुल में उत्तम क्रिया न हो उसमें शादी करना उचित नहीं होता है।
8. जिस कुल में किसी को गलित कुष्ठ हुआ हो अर्थात शरीर की त्वचा कट-कटकर गिर रही हो, उस कुल में शादी करना ठीक नहीं होता है।
9. जिस कुल में किसी को श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) हो उस कुल में शादी न करें।
10. जिस कुल में किसी को मिर्गी रोग हो, उस कुल में भी शादी करना अच्छा नहीं रहता है।
अपने से नीच जाति की कन्या से विवाह न करें- 
1. जिस लड़की की त्वचा पीले रंग की हो उससे विवाह न करें।
2. जिस लड़की की आंखे बिल्लौरी हो उससे शादी न करें।
3. अधिक बोलने वाली लड़की अर्थात बतूनी से शादी करना उचित नहीं होता है।
4. जिस लड़की के शरीर पर बड़े-बड़े बाल (रोयें) हो उससे शादी न करें।
5. जिस लड़की के शरीर पर बिल्कुल भी रोयें न हो उससे भी शादी न करें।
6. जिस लड़की के शरीर में अधिक अंग हो उससे शादी न करें। जैसे- छः अंगुली वाली लड़की।
7. रोहिणी, अद्रा, मघा, पूर्वा आदि नक्षत्र के नाम की लड़कियों से शादी न करें।
8. नदी के नाम पर जिस लड़की का नाम रखा गया हो उससे भी शादी न करें, जैसे- गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी आदि।
9. पर्वत के नाम वाली लड़की से भी शादी न करें। जैसे- विध्यांचल, मंदाकिनी आदि।
10. पक्षी के नाम वाली लड़की से शादी न करें जैसे- हंसनी, मैना, सुगनी, पटू आदि।
11. सांप के नाम वाली लड़की से शादी न करें जैसे- नागनी, उरंग, धामनी आदि। 
12. नीच नाम वाली लड़की से शादी न करें जैसे- दासी, छोटी आदि। 
13. भयानक नाम वाली लड़की के नाम से शादी न करें जैसे- कालिका, चंडिका, भवानी, सूर्पंनखा आदि। 
14. जिस लड़की के नाम के पीछे का शब्द मा हो उससे शादी नहीं करनी चाहिए जैसे- कालीमा, लालीमा, मनोरमा आदि।
कैसी कन्या से विवाह करें – 
1. जिस लड़की का नाम सुंदर हो उससे शादी करनी चाहिए जैसे- यशोदा, सौभाग्यवती, कंचन, पारो, कोमल, पारुल आदि।
2. हंस और हाथी के समान धीरे-धीरे चलने वाली लड़की से शादी करना अच्छा होता है।
3. जिस लड़की के रोम छोटे, केश बड़े तथा दांत छोटे हो उससे शादी करें। 
4. जो लड़की मीठी बोलती हो और मृदु अंग वाली हो उससे शादी करें।
5. जो पिता के गोत्र तथा माता की पीढ़ी में न हो उससे शादी करनी चाहिए।
वैसे देखा जाए तो संसार में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी होता है जिसमें सोचने तथा विचार करने की शक्ति होती है। उसे छोटे से छोटे तथा बड़े से बड़े कार्यों को करने के लिए सोचना तथा विचार करना पड़ता है। इसलिए मनुष्यों को कोई भी कार्य करने के लिए सबसे पहले मन की शक्ति तथा दूसरे अंगों की शक्ति की आज्ञा के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है। इस शक्ति की सहायाता के बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता है।
मनुष्य का विचार एक प्रकार के कंपन के समान होता है, यह ठीक उसी प्रकार से लगता है जिस प्रकार से तालाब में एक छोटा सा कंकड़ फेंक देने से उसमें एक लहर उत्पन्न होती है। उसी प्रकार विचार भी एक लहर के समान वातावरण में कंपन उत्पन्न कर देती है।
ईथर एक प्रकार का ऐसा तत्व होता है जो वायुमण्डल में एक सैकेंड में 50 कंपन उत्पन्न करने की शक्ति रखता है। इसके 415 हजार कंपन तक की संख्या को मनुष्य सुन सकता है। ईथर के परमाणु इतने सूक्ष्म हैं कि सोने जैसे धन द्रव्य के एक परमाणु में ईथर के लाखों परमाणु हैं। प्रत्येक विचार जो मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं वे ईथर पर प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार ईथर पर हमारे विचार अंकित हो जाते हैं।
कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि आचार और स्वभाव इच्छा और आवश्यकता के अनुसार विकसित होना या लोप हो जाना मनुष्य की मन शक्ति पर निर्भर होता है जैसे- सिंह की विकराल मूर्ति उसके तेज स्वभाव के कारण और गाय की शांत मूर्ति उसके शांत जीवन के कारण है। क्या आपको पता है कि जो जानवर पालतू होते हैं उसमें और उसी जाति के जंगली जानवर के स्वभाव में अधिक अंतर देखने को मिलता है। पालतू जानवरों का स्वभाव शांत और जंगलियों का स्वभाव तेज हो जाता है। बहुत से रेंगने वाले जीवों ने सैकड़ों हजारों वर्षों तक पैरों की इच्छा उत्पन्न करके पैर पैदा कर लिए, इसी तरह से मछलियों ने पर उत्पन्न कर लिए। लता और फूलों में भी विचित्र रंग हो गए। यह मानसिक शक्ति का ही प्रभाव है। इस प्रकार की बातों से हमें यह पता चलता है कि मानसिक शक्ति बच्चे के विकास में कितनी सहायक है। उदाहरण के लिए श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम का ही फल था कि श्रीकृष्ण का पुत्र श्रीकृष्ण के समान था। वे इस प्रकार कृष्ण से मिलते-जुलते थे कि उन्हें यह लगता था कि क्या यह मैं ही तो नहीं हूं। प्रद्युम्न का रूप ही नहीं गुण भी कृष्ण से मिलता था।
एक बार एक दम्पत्ति ने एक सुंदर बालक का चित्र खरीदा और जब गर्भवती हुई तो वह उस चित्र को रोज गौर से देखा करती थी और जब उसने एक बालक को जन्म दिया तो यह देखा कि उस चित्र वाले बालक से कुछ-कुछ शक्ल उसके बालक का मिलता-जुलता था।
हम एक घटना और भी बताना चाहते हैं कि एक बार एक स्त्री अपने बच्चे को अफीम खिलाकर कहीं चली गई थी लेकिन अफीम की मात्रा बढ़ जाने से उसके बच्चे की मृत्यु हो गई। इससे स्त्री को बहुत दुःख हुआ। उसी दशा में उसे फिर गर्भ ठहर गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि जो बच्चा पैदा हुआ वह रोगी और कमजोर था। उसे जन्म से ही मस्तिष्क विकार था, दो वर्ष रो

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